Tuesday, December 22, 2020

इसीलिए किसी को उपदेश देने से पहले स्वयं वैसा आचरण करना जरुरी है - 20.12.2020

 

    अक्सर हम देखते हैं कि मनुष्य उन व्यक्तियों के आचरण का अनुसरण करता है जिन्हें वह धन, प्रतिष्ठा, राजनीति में उच्च स्थान, उच्च पद या व्यापार में अपने से श्रेष्ठ समझता है। वह वैसा ही बनना चाहता है। इसी प्रकार परिवार में भी प्रमुख व्यक्ति या मुखिया जैसा आचरण करता है, परिवार के अन्य सदस्य भी करीब-करीब वैसा ही आचरण करना सीख जाते हैं। गीता में भगवान कहते हैं कि ‘श्रेष्ठ पुरुष जैसा-जैसा आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाणित कर देता है, समस्त समुदाय उसी के अनुसार करने लग जाता है।’ यानी समाज को सुचारु रुप से मार्गदर्शन देने में श्रेष्ठ पुरुषों का बहुत बड़ा योगदान रहता है।

यदि उच्च पद पर आसीन एक प्रमुख अधिकारी समय पर कार्यालय आता है और देर तक बैठकर अपना कार्य पूरी ईमानदारी, मेहनत, तत्परता के साथ करता है तो उसे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को इन विषयों पर कुछ ज़्यादा कहने की आवश्यकता नहीं होगी। वे उसके आचरण और कार्यशैली को देखकर स्वयं ही उसके अनुसार ही कार्य करते रहेंगे। इसके विपरीत यदि वह स्वयं ही रिश्वत लेगा और कार्य में मेहनत नहीं करेगा, तब सभी कर्मचारियों का व्यवहार भी वैसा ही बनने लगेगा। यदि वह स्वयं को न बदलकर केवल भाषण या प्रमाण से दूसरों को बदलने का प्रयास भी करेगा, तब वह असफल ही रहेगा। इसी तरह से सभी क्षेत्रों में चाहें वह राजनीति का क्षेत्र हो, व्यपार का या पारमार्थिक क्षेत्र हो, यही नियम लागू होता है। आचरण का प्रभाव प्रमाण से बहुत ज्यादा होता है। इसलिए श्रेष्ठ पुरुषों को, चाहे वे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हों, सबसे पहले अपने आचरण में ही सुधार लाना होगा। तब उसका प्रभाव उनके आचरण का अनुसरण करने वालों पर रहेगा।

    एक छोटा सा दृष्टांत है। एक बार एक महिला अपने पुत्र को लेकर अपने गुरुजी के पास गयी और बोली ‘महाराज, यह मिठाई बहुत खाता है और इसके कारण इसे कुछ रोग होने लगा है। आप इसे समझाकर इसकी इस आदत को छुड़वा दें।’ गुरूजी ने उसे पंद्रह दिन के बाद बुलाया। पंद्रह दिन बाद जब महिला आई तो गुरुजी ने उस बालक से कहा ‘बेटा मिठाई खाना छोड़ दो, यह तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।’ महिला ने कहा, ‘गुरुजी, यह बात तो आप पंद्रह दिन पहले भी कह सकते थे।’ तब गुरुजी ने कहा, ‘मैं स्वयं भी काफी मिठाई खाने का शौकीन था और इन पंद्रह दिनों में मैंने मिठाई खाना पूरी तरह से बंद कर दिया। अब मैं इसे मिठाई छोड़ने के लिए कह सकता हूँ। मैं स्वयं मिठाई खाऊँ और इसे मिठाई छोड़ने के लिए कहुँ, तब इस पर मेरी बातों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। पहले स्वयं का आचरण या व्यवहार ठीक करने के बाद ही मुझे इसे उपदेश देने का अधिकार है, अन्यथा सब व्यर्थ ही रहेगा।’

    गीता में भगवान कहते हैं, ‘मेरे लिए इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्म करता हूँ। कदाचित मैं कर्म म करुँ तो बड़ी हानि हो जाए, क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।’ इसी प्रकार से विभिन्न क्षेत्रों में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपना प्रत्येक कार्य बहुत ही सावधानी, पूरी ईमानदारी, तत्परता, निस्वार्थ भाव से, दूसरों के हित को ध्यान में रखते हुए करें। तब उनके आचरण को ध्यान में रखते हुए अन्य व्यक्ति उन्हें अपना आदर्श मान सकते हैं।

 

                                             धन्यवाद
                                          डॉ. बी. के. शर्मा

 

(मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स में स्पीकिंग ट्री के अंतर्गत 10 December 2020 को प्रकाशित हुआ है)

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