Monday, May 4, 2020

तमोगुणी (तामस) कर्म - दिनांक 1 मई 2020

व्यवहारिक गीता ज्ञान
भगवान ने गीता के मोक्ष  सन्यास योग नामक 18वें अध्याय के 25 वें श्लोक में तमोगुणी कर्म के विषय में कहा है कि:-
 
🌺 अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पोरूषम् ।
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ।। 🌺

          जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचार कर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है।

भगवान ने गीता में तीन तरह के कर्म बतलाए हैं,
१. सात्विक कर्म २. राजस कर्म ३. तामस कर्म ।

सात्विक कर्म शास्त्र विधि से नियत किया हुआ, कर्तापन के अभिमान से रहित तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग, द्वेष से किया जाता है।  

रजोगुणी (राजस) कर्म भोगों (फल ) को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकार युक्त पुरुष द्वारा किया जाता है।  

         इस श्लोक में भगवान ने तमोगुणी (तामस) कर्म के विषय में कहा है कि यह कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और अपने सामर्थ्य का विचार न करके केवल अज्ञान से प्रारंभ किया जाता है।

      🎊👑सात्विक कर्म उच्च श्रेणी में आता है यह हमें कर्म बंधन से मुक्त करके इस जन्म मरण के आवागमन से भी मुक्त करता है और कर्म करते हुए अभिमान ना होने के कारण हमारे अंदर एक हल्का पन आ जाता है, और मृत्यु के बाद उच्च लोकों में ले जाता है।👑🎊

        🌺राजस कर्म में फल की इच्छा और अहंकार होने के कारण यह हमें कर्म बंधन में डालता है। मध्य श्रेणी में आता है। और जैसा कि भगवान शंकराचार्य जी ने भज गोविंदम में कहा है:-

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम।
इहे संसारे बहुदुस्तारे, 
कृपयाअपारे पाहि मुरारे।। 🎊 

  फल की ओर भोगों की इच्छा रखते हुए कर्म करते रहने के कारण , बार-बार जन्म होता है, मृत्यु होती है, बार-बार माता के गर्भ  में रहना पड़ता है, इस दुख रूपी संसार को केवल ईश्वर की कृपा से या भगवान द्वारा शास्त्रों में बतलाए  गए मार्ग पर चलकर ही पार पाया जा सकता है।

   तामस कर्म तो अत्यंत ही निम्न श्रेणी में आता है।  जब हम किसी भी कर्म को शुरू करने से पूर्व ना तो उसके परिणाम के विषय में विचार करते हैं कि इसके करने से किसी को सुख होगा या दुख होगा, यह लोकहित की दृष्टि से उचित है या नहीं। इसके करने से धर्म की ओर धन की हानि होगी या और भी किसी तरह की हानि हो सकती है। प्रकृति के भी यह विरुद्ध है, या नहीं, इससे किसी की हिंसा हो सकती है इस पर भी विचार न करना। इस कार्य  को पूरा करने की सामर्थ्य मेरे अंदर है भी या नहीं; इस पर भी विचार न करके , केवल मोह या अज्ञान के द्वारा यदि कार्य शुरू किया जाता है तब यह तामस कर्म की श्रेणी में आता है। तामस कर्म करने के कारण मनुष्य का पतन हो जाता है, और वह मृत्यु के पश्चात मनुष्य जन्म न प्राप्त करके ज्ञान रहित योनियों जैसे पशु, पक्षी, वृक्ष आदि में जन्म लेता है। अतः हमें अपना कल्याण करने के लिए भगवान द्वारा गीता में बतलाए गए इन 3 कर्मों के विषय में भली-भांति विचार करके अपने दैनिक कर्मों को करते रहना चाहिए ताकि हमारा मनुष्य जन्म लेना सफल हो सके।


    🙏 धन्यवाद
        बी .के. शर्मा 

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