Wednesday, May 6, 2020

रजोगुणी (राजस) कर्ता - दिनांक 3 मई 2020

व्यवहारिक गीता ज्ञान

     🎉भगवान गीता के मोक्ष सन्यास योग नामक 18वें अध्याय के 27 वें श्लोक  में रजोगुणी (राजस) कर्ता के लक्षण बताते हैं:-

👑🎊 रागी कर्मफलप्रेप्सूर्लूब्धो हिंसात्मकोऽशुचि:।
हर्षशोकान्वित: कर्ता राजस: परिकीर्तित: ।। 👑🎊

जो कर्ता आसक्ति से युक्त ,कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी  है, तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाव वाला, अशुद्धाचारी और हर्ष -शोक से लिप्त है - वह राजस कहा गया है।

     इसके पूर्व के श्लोक 18/ 26 में भगवान ने सात्विक कर्ता के पांच लक्षण बताए थे कि वह आसक्ति से रहित होकर कर्म करता है,  अहंकार के वचन न  बोलने वाला , धैर्य और उत्साह से युक्त,  तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष - शोक आदि विकारों से रहित होता है । इस श्लोक में भगवान ने रजोगुणी (राजस) कर्ता के 6 लक्षण बताए हैं 

१)  राजस  कर्ता आसक्ति से युक्त होकर ही अपने कर्म करता है,  उसे अपने घर ,परिवार , पैसे से बहुत आसक्ति होती है,  उसका मन हमेशा संसार के इन्हीं भौतिक नाश्वान पदार्थों में लगा रहता है । उसकी प्रत्येक क्रिया बहुत ही ममता पूर्वक होती है अतः उन्हीं में बंध कर रह जाता है , मुक्त ही नहीं हो पाता ।

२)  राजस कर्ता अपने प्रत्येक कर्म के फल को दृष्टि में रखकर ही करता है , यदि  समाज में कोई कर्म करेगा तब उसे इससे मान ,बड़ाई ,आदि मिलेगी इस पर दृष्टि  रखकर करेगा,  दान भी देगा तभी उसके मन में उसके फल की इच्छा होगी कि समाज में मेरा आदर होगा ।

 ३) राजस कर्ता लोभी स्वभाव  का होता है । उचित या अनुचित तरीके से केवल धन इकट्ठा करने की उसकी आदत बन जाती है। उचित अवसर आने पर भी बहुत ही कष्ट पूर्वक अपने धन को खर्च करता है दूसरों के हित के लिए तो बिल्कुल भी नहीं करता। मृत्यु पर्यंत धन को इकट्ठा करता रहता है और उसके पश्चात दूसरे व्यक्ति उसका भोग रूप में , दान रूप में, या ऐसा धन  अंततः नाश को प्राप्त होता है।  

४)  राजस कर्ता दूसरों को कष्ट देने के स्वभाव वाला होता है। राजस कर्ता अपने लोभ के कारण तथा अपने सुख भोग और आसक्ति के कारण,  कर्म करते समय यह ध्यान नहीं देता कि इससे किसी को कोई दुख या कष्ट तो नहीं हो रहा है,  वह तो केवल अपने को ही ध्यान में रखते हुए कर्म करता हैं और दूसरों की कोई प्ररवाह  उसे नहीं होती। 

५). राजस कर्ता को भगवान ने अशुद्ध कहा है । राजस कर्ता अपने लोभ, ममता और भोगो में आसक्ति के कारण जो धन या और भौतिक पदार्थ एकत्र करता है, वह अपवित्र हो जाती है चूंकि  उसमें उचित या अनुचित तरीकों का भी ध्यान नहीं रखा गया है और ऐसा कर्ता स्वयं भी सदाचार का पालन नहीं करता।
और 

६) राजस कर्ता हर्ष और शोक से युक्त रहता है।  चूंकि राजस कर्ता अपना प्रत्येक कर्म फल की इच्छा रखते हुए, आसक्ति के साथ करता है, तब यदि उसके अनुसार ही पूर्ण हो जाता है तब उसे बहुत ही हर्ष होता है और यदि उसके मन के अनुकूल उसे सफलता नहीं मिली तो उसके मन में बहुत दुख होता है । अतः अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति तो आती जाती रहती है लेकिन वह हर्ष और शोक में अपने जीवन में फंसा रहता है और कर्म बंधन में फंस जाता है।


इन्हीं कर्म बंधनों के कारण राजस  कर्ता अपने पूरे जीवन में फंसा रहता है और एक दिन मन में इच्छा और आसक्ति के साथ यह शरीर छोड़कर अपने किए गए कर्म के अनुसार दूसरा शरीर प्राप्त कर लेता है और यह आवागमन तब तक चलता रहता है, जब तक कि वह अपने स्वभाव में परिवर्तन करके अपने कर्म करने की विधि को भगवान द्वारा सात्विक कर्ता के विषय में बतलाए गए लक्षणों को अपने दैनिक व्यवहार में नहीं अपनाता।


     🙏 धन्यवाद
      बी. के. शर्मा 

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