Sunday, May 3, 2020

अंत:करण की शुद्धि के लिए कर्म करना - दिनांक 15 अप्रैल 2020

व्यावहारिक गीता ज्ञान 

     🌈🌷भगवान गीता के कर्म सन्यास योग नामक पांचवें अध्याय के 11 वें श्लोक में कहते हैं कि:-


🍄 कापेन मनसा बुध्दया केवलैरिन्द्रयैरपि । 🍄
🍄 योगिन: कर्म कुर्वंति संग्ड़ त्यक्त्वात्मशुध्दये।।🍄

🌷कर्म योगी ममत्व बुद्धि रहित केवल इंद्रिय, मन ,बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ती को त्याग कर अंतःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।

    🌷भगवान कर्म योगी के लिए आसक्ति का त्याग एवं फल की इच्छा के त्याग के लिए बार-बार कहते हैं । गीता के श्लोक (5/10) में भगवान कहते हैं कि जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है वह जल में कमल के पत्ते की भांति पाप में लिप्त नहीं होता । अर्थात यदि हम अपने सभी कर्म भगवान में अर्पण करके आसक्ति रहित होकर करते हैं तब ऐसा योगी पुरुष भक्ति योगी कहलाता है । इसी प्रकार से गीता के श्लोक (5/8,5/9) में भगवान सांख्य (ज्ञान) योगी के विषय में कहते हैं कि वह तो देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सुघंता हुआ, भोजन करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, सांस लेता हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा आंखों को मूदंता और खोलता हुआ भी,सब इंद्रियां अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं -- इस प्रकार समझकर निसंदेह ऐसा माने कि मैं कुछ भी नहीं करता हूं।

🌷इस श्लोक में भगवान कर्म योगी के विषय में कहते हैं कि वह अपने कहलवाने शरीर, मन, बुद्धि, इंद्रियां आदि से कर्म करते हुए भी उन्हें अपना नहीं मानता।  यदि विचार करें तब यह शरीर तो भगवान का दिया हुआ है , गर्भ में ही बना है । दूसरी तरफ यह पांच तत्वो (आकाश ,पृथ्वी ,जल, अग्नि, वायु ) से बना है अर्थात प्रकृति के साथ ही इसकी एकता है और संसार की सेवा (कार्य) के लिए मिला है । ईश्वर (परमात्मा) चेतन तत्व रूप से इस शरीर में विद्यमान हैं  । इसलिए भगवान कहते हैं कि कर्म योगी मन, बुद्धि, इंद्रियां और शरीरादि में एवं उनके द्वारा होने वाली किसी भी क्रिया में ममता और आसक्ति न रखकर अंतःकरण की शुद्धि के लिए ही कर्म करते हैं।

🌷इस प्रकार से कर्म करने वाला भक्ति प्रदान कर्म योगी पापों से लिप्त नहीं होता और कर्म प्रधान कर्म योगी निष्काम भाव से कर्म करते हुए शुद्ध अंतःकरण को प्राप्त होकर कल्याण को प्राप्त है । इसी प्रकार सांख्य योगी यह मानता है कि वह तो कुछ कर्म नहीं करता बस केवल सभी इंद्रियां अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं । अतः हम उपरोक्त तीनों में से कोई एक मार्ग का अनुसरण करके कर्म करते हुए भगवत प्राप्ति इसी मनुष्य जन्म में कर सकते हैं । लेकिन शास्त्रों में भगवान द्वारा कहे गए वाक्यों पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने इसी जीवन में अनुकरण  तो हमें ही करना होगा तभी इस आवागमन से मुक्त हो पाएंगे।

धन्यवाद
बी के शर्मा 🙏

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