Friday, May 1, 2020

आत्मा के विषय में - दिनांक 7 अप्रैल 2020


व्यवहारिक गीता ज्ञान

भगवान गीता के क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग नामक 13वें अध्याय के 22 वें श्लोक में कहते हैं:-

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उपदृष्टानुमंता च भर्ता भोक्ता महेश्वर:।
परमात्मेति चापयुक्तो  देहेअस्मिन्पुरुष: पर:।।

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इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है।  वही साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमंता,  सब का धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता,  जीव रूप से भोक्ता,  ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानंद होने से परमात्मा ऐसा कहा गया है।

     🌹   कल के श्लोक में जैसे हमने जाना कि भगवान ही सब भूतों के हृदय में स्थित सबके आत्मा हैं और भगवान ही संपूर्ण भूतों के आदि, मध्य और अंत भी वही है । उसी को आगे विस्तार करते हुए भगवान कहते हैं कि सभी शरीरों में जो चेतन तत्व (पुरुष) है,  वही वास्तव में परमात्मा है।  शरीर जो कि क्षेत्र नाम से कहा गया है, प्रकृति का अंश है, और अंत में प्रकृति में ही विलीन हो जाता है।  लेकिन जो इस शरीर में रहकर इस शरीर को जानने वाला क्षेत्रज्ञ है वह इस प्रकृति से अतीत परमात्मा ही है । प्रकृतिजनित शरीरों की उपाधि से चेतन आत्मा (परमात्मा) अज्ञान के कारण जीव भाव को प्राप्त सा प्रतीत होता है।

         अतः जीवात्मा (हम) परमात्मा से अपने को अलग महसूस करता है और अनन्त समय से संसार रूपी बीहड़ वन में इधर-उधर सुख की खोज में जहां भी जाता है । सुख की खोज में जहां भक्त जाता है वही धोखा खाता है । जब तक वह परम सुख स्वरूप परमात्मा के समीप नहीं पहुंच जाता, तब तक उसे सुख शांति कभी नहीं मिल सकती।

      यह हमारे शरीर में स्थित चेतन तत्व (परमात्मा) या परम पुरुष अंतर्यामी रूप से हमारे सभी शुभ-अशुभ (अच्छे बुरे) कर्मों का निरीक्षण करने वाला है अर्थात देखता रहता है इसलिए उसे उपद्रष्टा कहते हैं । कुछ दिन पूर्व हमने (3 अप्रैल 2020) में जाना था कि शरीर रूपी यंत्र में 
आरुण हुआ परमात्मा हमारे कर्मों के अनुसार संसार में हमें भ्रमण कराता है । अंत: परमात्मा हमारे हृदय में स्थित होकर हमारे सभी बुरे अच्छे कर्मों को देखकर उसी के अनुसार हमारा प्रारब्ध (भाग्य)  बनकर फल रूप में हमारे सामने आ जाता है। इसलिए हमें प्रत्येक कार्य करने से पूर्व भली-भांति उस पर विचार कर लेना चाहिए।

          हमारे शरीर में स्थिति परम पुरुष (परमात्मा) अंतर्यामी रूप से सम्मति चाहने वाले को उचित अनुमति देता है,  इसलिए उसे अनुमंता कहते हैं । वही परमात्मा विष्णु रूप से समस्त संसार का रक्षण और पालन करता है इसलिए उसे भर्ता कहते हैं । वही प्राणियों के रूप में समस्त भोगों को भोगता है, इसलिए उसे भोक्ता कहते हैं । वही समस्त लोकपाल , ब्रह्मादि ईश्वरौ, सूर्य , चंद्रमा और सृष्टि का नियमन करता है इसलिए उसे महेश्वर कहते  हैं । वह सदा ही सब गुणों से सर्वदा अतीत है इसलिए उसे परमात्मा कहते हैं। इसलिए वह एक ही परमात्मा भिन्न-भिन्न निमित्तौ से अलग-अलग नामों द्वारा जाना जाता है, लेकिन उसमें जरा भी भेद नहीं है।  हमें उसी परम तत्व (परमात्मा) को जानने का प्रयास करना चाहिए।


धन्यवाद 
बी .के .शर्मा

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