व्यवहारिक गीता ज्ञान
भगवान गीता के मोक्ष सन्यास योग नामक 18 वें अध्याय के 28 वें श्लोक मैं तमोगुणी (तामस) कर्ता के लक्षण बताते हैं कि:-
अयुक्त: प्राकृत: स्तब्ध: शठो नैष्कृतिकोऽलस: ।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ।।
जो कर्ता अयुक्त , शिक्षा से रहित, घमंडी,धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री है । वह तामस कहा जाता है।
भगवान ने गीता में हम सभी मनुष्यों को तीन श्रेणी में रखा है। हमें स्वयं इस पर विचार करना है कि हम अभी किस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
१. सात्विक कर्ता 2. राजस कर्ता 3. तामस कर्ता । कर्ता के अंदर जैसे भाव उसके अंत:करण में आते हैं या उसका जैसा स्वभाव या प्रकृति है वैसे ही उसके द्वारा कर्म होते हैं।
भगवान ने गीता के श्लोक 18/26 में सात्विक कर्ता के पांच लक्षण बताये हैं कि वह आसक्ति से रहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त, कार्य के सिद्ध होने या ना होने में हर्ष - शोक से रहित होता है । उसके बाद श्लोक 18 /27 में राजस कर्ता के 6 लक्षण बताएं हैं कि वह आसक्ति से युक्त, कर्मों के फल को चाहने वाला, लोभी, दूसरों को कष्ट देने के स्वभाव वाला, अशुद्ध चारी और हर्ष -शोक से लिफ्त होता है।
इस श्लोक में भगवान ने तामसिक कर्ता के 8 लक्षण बताएं हैं कि वह
1. जिसका चित्त समाहित नहीं है अर्थात जिसके मन और इंद्रियां बस में नहीं है ,बल्कि वह स्वयं ही उनके वश में है । वह कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में विचार ही नहीं करता।
2. जिसको शास्त्रों का ज्ञान नहीं है अर्थात संस्कार हीन बुद्धि वाला है। जिसको अपने कर्तव्य कर्म का भी ज्ञान नहीं है । उचित और अनुचित का भी कर्म करते हुए विचार नहीं करता।
3. जो घमंडी है, अर्थात जो कठोर स्वभाव वाला है, जिसमें विनय नहीं है। अपने घमंड के सामने दूसरों को कुछ नहीं समझता।
4. जो धूर्त अर्थात कपटी स्वभाव का है , अपने मन में दूसरों का अनिष्ट सोचता है, दूसरों को ठग लेता है आदि- आदि
5. जो दूसरों की जीविका का नाश करने में तत्पर रहता है । यदि किसी ने उसके साथ कभी अच्छा भी किया है तब भी वह समय आने पर उसका बुरा करने की आदत वाला है।
6. जो हमेशा दुखी स्वभाव का रहता है । हमेशा चिंता करता रहता है और चिंताओं के कारण शोक करता रहता है , उसकी चिंताओं का अंत नहीं होता।
7. जिसके अंदर काम करने का उत्साह ही नहीं होता। अलसी की तरह पड़ा रहता है और सोचता रहता है अपने कर्तव्य कर्मों को करने की इच्छा ही नहीं होती।
8. जो कार्य को यदि आरंभ कर भी दे, तब समय पर उसे समाप्त नहीं करता । सोचता है ,कल कर लेंगे , अभी तो बहुत समय हैं, उसको लंबा खींचता रहता है। कम समय में पूरा होने वाले कार्य में भी अधिक समय लगाता है।
जिसके अंदर यह सभी या कुछ भी लक्षण हैं वह तामस कर्ता की श्रेणी में आता है। इन पर विचार करके हमें अपने अंदर से ऐसे लक्षणों को दूर करके अंततः सात्विक कर्ता के गुणों को अपनाने की दिशा में प्रयासरत रहना चाहिए। भगवान गीता के श्लोक 14 /14 में कहते हैं कि जब यह मनुष्य सत्व गुण की बृध्दि में मृत्यु को प्राप्त होता है तब तो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य लोगों को प्राप्त होता है। रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ मनुष्य कीट, पशु आदि योनियों में उत्पन्न होता है। अपने अंदर जो कमियां हैं उनको हम ही दूर कर सकते । भगवान ने गीता के श्लोक 6/ 5 में कहा है कि अपने द्वारा अपना संसार- समुद्र से उद्धार करें और अपने को अधोगति में ना डालें, क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र हैं और आप ही अपना शत्रु हैं।
धन्यवाद
बी .के .शर्मा।
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