Sunday, May 3, 2020

कर्म के अनुसार ही जन्म और मृत्यु का प्राप्त होना - दिनांक 24 अप्रैल 2020

व्यवहारिक गीता ज्ञान 

    🌈🎊भगवान ने गीता के क्षेत्र  क्षेत्रज्ञ विभाग नामक 13 वें अध्याय के पहले श्लोक में कहा है की यह शरीर क्षेत्र इस नाम से कहा जाता है और इसको जो जानता है उसको क्षेत्रज्ञ इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानी जन कहते हैं।  क्षेत्र का अर्थ खेत से है, अर्थात खेत में जैसी बीज बोए जाते हैं वैसे ही समय आने पर उसमें फसल उगती है, इसी प्रकार जैसे हम कर्म करते हैं वैसे ही संस्कार हमारे अंतःकरण में इकट्ठे होते  रहते हैं और समय आने पर प्रारब्ध के रूप में हमारे सामने उपस्थित हो जाते हैं।  इन सबके लिए दूसरा कोई भी जिम्मेवार नहीं है हम ही उत्तरदाई हैं।  

      🎉 महाभारत के युद्ध समाप्त हो जाने के उपरांत जब युधिष्ठिर, भीष्म पितामह से मिलने गए और कहां कि हमारे द्वारा ही आप बाणों की शैया पर पड़े हैं और लाखों लोगों की इस युद्ध में मृत्यु हो गई है, इस कारण मुझे तनिक भी शांति नहीं मिलती।  आप कुछ ऐसा उपदेश दीजिए, जिससे मैं परलोक में इस पाप से छुटकारा पा सकूं।

        🎉💦महाभारत के अनुशासन पर्व में आता है कि तब भीष्म जी के गौतमी नाम की एक बूढ़ी ब्राह्मणी, वहेलिया, सर्प, मृत्यु और काल के संवाद रूप प्राचीन इतिहास का उदाहरण देकर युधिष्ठिर को समझाया।  एक दिन गौतमी स्त्री के इकलौते बेटे को सांप ने जंगल में काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई।  इतनी में अर्जुनक  नामक के  एक बहेलिया ने उस सांप को जाल में बांध  लिया और उस बूढ़ी स्त्री  के पास लाकर कहा इस  सांप ने  आपके बेटे को काट लिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई अब बताओ मैं इस सांप का किस प्रकार बध करूं।  आपके बेटे  की हत्या के कारण यह जीवित रहने के योग्य नहीं है।  तब उस गौतमी स्त्री  ने बहेलिये से कहा कि होनी को कौन टाल सकता है, और सांप को मारने के बाद क्या मेरा बेटा जीवित हो सकता है। लेकिन तब भी बहेलिये ने कहा कि मैं तो सर्प को अवश्य मारूंगा, शत्रु को मारने में ही लाभ है।   वहेलिए  के  बार-बार उकसाने के बाद भी गौतमी ने उस सांप को मारने के विषय में अपनी सहमति नहीं दी। तब  सांप ने अपने को संभालते हुए मनुष्य की वाणी में कहा कि हे बहेलिए इसमें मेरा कोई दोष नहीं है, मैं तो पराधीन हूं।  मृत्यु ने मुझे प्रेरित किया और उसी के कहने पर मैंने इस बालक को काट लिया। अपनी इच्छा से नहीं। इसमें कुछ अपराध है तब मेरा नहीं, मृत्यु का है।  जैसे दंड और चक्र आदि मिट्टी के बर्तन बनाने में कारण होते हुए भी कुम्हार के अधीन है, इसलिए स्वतंत्र नहीं माने जाते।  इसी प्रकार मैं भी मृत्यु के अधीन हूं। मुझ पर जो आरोप लगाया है वह ठीक नहीं है।

       🎊  तभी मृत्यु ने आकर   कहा-सर्प! काल की प्रेरणा से मैंने तुझे प्रेरित किया था, इसलिए  इस बालक के विनाश में ना तो मैं कारण हूं और ना तू ही है। सात्विक, राजस और तामस जितने भी भाव हैं वे सब काल की ही प्रेरणा से प्राणियों को प्राप्त होते हैं।  पृथ्वी अथवा स्वर्ग लोक  में जितने भी स्थावर-जंडंम पदार्थ है सभी काल के अधीन है।  इस बात को जानकर भी तू मुझे क्यों दोष दे रहा है।  मृत्यु ने कहा कि जगत में जो कोई काम हो रहा है वह सब काल की ही प्रेरणा से होता है।  इसी बीच में काल भी वहां आ गया।

        🎉   काल बोला कि मैं, मृत्यु तथा यह सर्प कोई भी अपराधी नहीं है। प्राणियों की मृत्यु में हम लोग प्रेरक नहीं हैं। इस बालक ने जो कर्म किया था उसी से इसकी मृत्यु हुई है, इसके विनाश में इसका किया गया कर्म ही कारण है। जैसे कुम्हार मिट्टी से जो जो बर्तन बनाना चाहता है, बना लेता है। उसी प्रकार मनुष्य अपने किए गए  कर्म के अनुसार ही नाना प्रकार के फल भोगता है।  जिस तरह धूप और छाया दोनों सदा एक दूसरे से मिले रहते हैं उसी तरह कर्म और कर्ता भी एक दूसरे से सम्बद्ध होते हैं।  इस प्रकार से मैं, तू, मृत्यु, सर्प अथवा यह स्त्री कोई भी इस बालक की मृत्यु में कारण नहीं है।  यह बालक स्वयं ही अपनी मृत्यु में कारण है।

     👑भीष्म जी कहते हैं कि इस उपाख्यान को सुनकर तुम शांति धारण करो।  सब मनुष्य अपने अपने कर्मों के अनुसार ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं, तुमने या दुर्योधन ने कुछ नहीं किया है, काल की ही यह सारी करतूत है।

          🌈  अतः प्रत्येक कर्म करने से पहले मनुष्य को भली-भांति विचार कर लेना चाहिए।  प्रत्येक कार्य लोकहित में,  भगवान को अर्पण करके, शास्त्र विधि के अनुसार, ममता, आसक्ति और कामना या फल की इच्छा से रहित होकर केवल अपने को निमित्त मात्र मानकर करना चाहिए ताकि हमारे कर्म, अकर्म बनकर हमें कर्म बंधन से मुक्त कर सकें।

🙏 धन्यवाद🙏
   बी. के. शर्मा  🌈🎉

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