Friday, May 1, 2020

भगवद्गीता अध्ययन का महत्व - 5 April 2020

व्यावहारिक गीता ज्ञान        

            श्रीमद भगवत गीता महाभारत के युद्ध के शुरू होने से पूर्व युद्ध के मैदान में कौरवों और पांडवों की सेनाओं के मध्य में हम सभी मनुष्य जाति के हित के लिए एक उचित दिशा दिखाने हेतु अर्जुन को माध्यम बनाकर भगवान श्री कृष्ण के मुख से उजागर हुई है । इसका आरंभ विशाद (शोक) योग से हुआ है, उसके पश्चात सांख्य (ज्ञान) योग, कर्म योग से होते हुए समापन मोक्ष सन्यास योग से हुआ है । यदि हम सभी आज अपने विषय में विचार करें तब पाते हैं कि समय-समय पर हम किसी न किसी विशाद (भय या शोक) से ग्रसित होते रहते हैं और उनसे दूर होने का विचार करते हैं कि किसी भी भांति शीघ्र अतिशीघ्र अपने दुख, शोक और विषाद से दूर हो सके।
 
           इसी का उपाय हमें श्री भगवत गीता की शरण में जाने पर मिलता है । जैसे हम जब कोई वस्तु या उपकरण बाजार से खरीदते हैं, तब उसके साथ एक छोटी सी पुस्तिका भी मिलती है, जिसे पढ़कर हम उस उपकरण का ठीक से प्रयोग करना शुरू करते हैं और यदि कभी उस उपकरण को ठीक से प्रयोग करने में हमें कठिनाई आती है, तब हम उसके साथ मिली हुई पुस्तिका से उसे दूर करने का प्रयास करते हैं । और समय के साथ साथ हम उस उपकरण को चलाने में सक्षम हो जाते हैं।

           ठीक इसी प्रकार हमें अपने मनुष्य जीवन को सुचारू रूप से ईश्वर और शास्त्रों के दिशा निर्देशों के अनुरूप चलाने के लिए जिससे हमें भय, शोक या कोई भी विशाद ना होते हुए अपने सभी नियत कर्मों को भली भांति इस संसार में मनुष्य शरीर द्वारा निर्वाह करते हुए, अंत में मोक्ष प्राप्ति अर्थात  जन्म मृत्यु से छुटकारे हेतु भगवान ने हम पर दया करके श्रीमद भगवत गीता को हमारे लिए कलयुग के शुरू होने के पूर्व ही हमें प्रदान कर दी थी । बस केवल इसमें कहे गए भगवान के दिशा निर्देशों को अपने दैनिक जीवन व्यवहार में पालन करते हुए आनंद के साथ जीवन यापन करें। 

             भागवत पाद आचार्य शंकराचार्य जी भज गोविंदम में कहते हैं कि:- 


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    भगवदगीता किंचितधीता गंगाजललवकणिका पीता ।
    सकृदपि येन  मुरारिसमर्या, क्रियते    तस्य यमेन न चर्चा ।।
    (भज गोविंदम भज गोविंदम.....)
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       जिसने भगवत गीता का थोड़ा सा भी अध्ययन कर लिया, और जिसने गंगाजल का एक बूंद भी पी लिया,  जिसने एक बार भी मुरारी की भली-भांति पूजा कर ली, उसके पास यमराज कभी नहीं आते।
भगवत गीता,  उपनिषदों का सार है, उस गीता रूपी गंगा जल को पी लेने पर,  पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता । हमें इस बात का ध्यान रखना है कि केवल अध्ययन मात्र से ही हमें आत्मज्ञान नहीं मिल सकता, बल्कि हमें भगवत गीता में दिए गए भगवान के दिशा-निर्देशों को अपने जीवन में पालन करना पड़ेगा ।दार्शनिक विचारों को अपने जीवन में उतारने की कला ही सभी धर्मों का सार है । भगवान गीता के १८ वे अध्याय में कहते है:-

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अध्येष्यते च य इमं धम्र्य सम्वादमांवयो: ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति   मे मति ।।
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            जो पुरुष इस धर्म मय  हम दोनों (भगवान और अर्जुन) के संवाद रूप गीता शास्त्र को पड़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञान यज्ञ से पूजित होऊंगा- ऐसा मेरा मत है।

         अतः हम सब बड़े सौभाग्यशाली हैं, जो कि इस घर के अंदर ही रहने वाले समय का भी पूर्ण सदुपयोग करते हुए ज्ञान यज्ञ कर रहे हैं और इसके बाद भगवान द्वारा दिए गए गीता शास्त्र के दिशा निर्देशों का अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हुए एक आनंद का जीवन व्यतीत करेंगे ।
ऐसी आशा है।


धन्यवाद
वी. के. शर्मा

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