Sunday, May 3, 2020

सब कर्म भगवान को अर्पण बुद्धि से करना - दिनांक 18 अप्रैल 2020

व्यवहारिक गीता ज्ञान 

भगवान गीता के राज विद्या राजगुहम्योगो नामक नवे अध्याय के 27 वें श्लोक में कहते हैं:-

🎊🌈 यतकरोषि  यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पयाम || 🌈🎊

हे अर्जुन ! तू जो कर्म करता है, जो खाता है ,जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है वह सब मेरे अर्पण कर।

      भगवान ने नवें अध्याय की पहले 2 श्लोकों में इस गीता ज्ञान को परम गोपनीय, सब विद्याओं का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल देने वाला, धर्म युक्त, साधन करने में बड़ा, सुगम और अविनाशी कहा है। अतः: हमें इसके महत्व को समझते हुए अपने दैनिक व्यवहार में अपनाना चाहिए ।

       जैसा कि हमने पहले जाना कि भगवान ने गीता के 5 वें अध्याय के दसवें श्लोक में कहा है कि जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग  कर कर्म करता है, वह पुरुष जल से कमल के पत्ते की भांति पाप से लिप्त नहीं होता ।

         इस श्लोक में भगवान ने पांच क्रियाओं जैसे कर्म करना, शरीर को बनाए रखने के लिए खाना पीना, हवन करना, दान देना और तप करना को भगवान को अर्पण करके करने के लिए कहा है । यदि हम विचार करें तब हम जो भी कर्म करते हैं उसमें ममता , आसक्ति और फल की इच्छा रखते हुए ही करते हैं, इन्हीं का त्याग करके कर्म करने के लिए भगवान बार-बार अनेकों श्लोकों में कहते हैं। इसके आधार पर हमें बाहर से कोई वस्तु लाकर भगवान को अर्पण नहीं करनी है बल्कि जो भी हम शरीर ,मन ,बुद्धि ,इंद्रियां आदि से कर्म करते हैं वह सब कुछ भगवान के अर्पण करते हुए करने चाहिए ।

           हम तो अपनी सीमित वस्तु ही भगवान के अर्पण कर सकते हैं , भगवान तो सर्वशक्तिमान हैं वह तो उसको अनंत गुणा करके हमें वापस कर देंगे । शास्त्रों में आता है जब मनुष्य अपने आप को भगवान के अर्पण कर देता है तब भगवान कहते हैं कि तब मैं अपने आपको उसे दे देता हूं।

        जब हम अपने सभी कर्म, खाना-पीना आदि भगवान को अर्पण करके शुरू करेंगे और अंत में भी अर्पण कर देंगे तब हमसे कोई शास्त्र विरुद्ध या निषिद्ध कर्म या गलत प्रकार का खाना-पीना हो ही नहीं सकता । इसमें भी हमारा अंतःकरण शुद्ध होने लगेगा और अंत में हमें भगवत प्राप्ति हो जाएगी।

        स्वामी शरणानंद जी ने अपनी पुस्तक संत हृदयोदार में कहा है कि जो मनुष्य हर एक काम के अंत में कम से कम एक बार भी निश्चित रूप से भगवान को याद कर लेता है ,उसको मरते समय भगवान जरूर याद आ जाएंगे।

         इसलिए हम अपना प्रत्येक निर्धारित या नियत कार्य जो कि व्यापार या नौकरी से संबंधित है, खाना-पीना, स्नान करना , रसोई बनाना आदि कोई भी दैनिक कार्य करने से पूर्व  एक बार भगवान को स्मरण करके और अंत में पूर्ण होने के
 बाद फिर एक बार भगवान को स्मरण करके अर्पण कर दें कि मैं तो आपके दिए हुए इस शरीर से आपका  ही दिया हुआ कार्य केवल निमित्त मात्र होकर कर रहा हूं इसमें मेरा कुछ नहीं है इससे हम हर समय ही भगवान को याद करते हुए , उनको अर्पण करते हुए , बिना ममता, आसक्ति और फल की इच्छा से कर्म करते रहेंगे और शांति को प्राप्त हो सकते हैं।

🙏धन्यवाद🙏
      बी .के .शर्मा🙂

No comments:

Post a Comment