Sunday, May 3, 2020

कर्म करते हुए कर्म बंधन से मुक्त होना - दिनांक 19 अप्रैल 2020

व्यवहारिक गीता ज्ञान 

भगवान गीता के नौ वें अध्याय के 28 वें श्लोक में सभी कर्मों को भगवान को अर्पण करने के फल को बताते हुए कहते हैं कि:-

👑🎉 शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: ।
सन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ।। 👑🎉

          इस प्रकार जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं - ऐसे सन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा।

        🌺🌈इस श्लोक के पूर्व के 27 वें श्लोक में भगवान ने कहा है कि तू जो कर्म करता है ,जो खाता है, जो हवन करता है ,जो दान देता है और तप करता है वह सब मेरे अर्पण कर । उसी को आगे उस अर्पण करने के फल के विषय में भगवान कहते हैं  कि इससे तू शुभ और अशुभ फल रूप कर्म बंधन से मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा ।

           💦भगवान शंकराचार्य इस श्लोक के अपने भाष्य में कहते हैं कि इस प्रकार कर्मो को भगवान के अर्पण करके तू शुभाशुभ फलयुक्त कर्मबंधन से अर्थात अच्छा और बुरा जिसका फल है ऐसे कर्म रूप बन्धन से छूट जायेगा ।  भगवान के अर्पण करने से जो संन्यास है और कर्म रूप होने के कारण जो योग है उस संयासरूप योग से जिसका अंत:करण युक्त है उसी का नाम सन्यासयोगयुक्तात्मा है ऐसा होकर- तू इस जीवित अवस्था में ही कर्म बंधन से मुक्त होकर इस शरीर के नाश होने पर मुझे ही प्राप्त होगा, अर्थात भगवान में ही विलीन हो जाएगा।

         🌻  सब कुछ भगवान को अर्पण कर देने का अर्थ है कि इस संसार की वस्तुओं पर हमने भूल से जो ममता आरोपित कर रखी है यानी उसमें जो अपनापन है उसे छोड़ देना । यदि हम यह मान लें कि जो कुछ है सो परमात्मा का है हम तो उसके सेवक मात्र हैं उसकी सेवा करना ही हमारा धर्म है । इस बुद्धि से ममता चली जाती है । और जो कुछ है सब परमात्मा ही है इस बुद्धि से अहंकार का नाश हो जाता है । यानी परमात्मा को ही जगत का उपादान और निमित्त कारण समझ लेने से उसमें ममता और अहंकार  समाप्त हो जाते हैं  ।और हम  कर्म बंधन से मुक्त होकर भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं।

    🙏  धन्यवाद  🙏

      बी. के. शर्मा 👑🎉

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