Saturday, May 2, 2020

कर्म के द्वारा सिद्धि को प्राप्त करना - दिनांक 9 अप्रैल 2020

व्यावहारिक गीता ज्ञान

भगवान गीता के मोक्षसन्यास योग नामक 18 वें अध्याय के 45 वें और 46 वें श्लोक में हमे अपने अपने नियत कर्मों के करने के विषय में कहते है:-

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स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धि लभते  नर: ।
स्वकर्मनिरत: सिद्धि यथा विदन्ति तच्क्षणु ।।
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      अपने अपने कर्मों में तत्परता पूर्वक लगा हुआ मनुष्य भगवत प्राप्ति रूप परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है ।  अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परम सिद्धि को प्राप्त होता है उस विधि को तू सुन।

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यत: प्रवृत्ति भूतानां येन सर्वमिदं ततम ।
स्वकर्मणा तमंभ्यच्र्य  सिद्धिं विन्दंति मानव: ।।
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    जिस परमेश्वर से संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत व्याप्त है, उस परमात्मा का अपने कर्म के द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

भगवान कहते हैं कि जिस मनुष्य का जो स्वाभाविक या नियत कर्म है या हम जो भी अपना जीवन यापन के लिए नौकरी या व्यापार आदि करते हैं उसी को तत्परता से बिना राग, द्वेष और आसक्ति से यदि हम करते हैं तब भी हमें उस परम पद की प्राप्ति हो जाती है ।  इस कथन से भगवान कहते हैं कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए कर्मों का स्वरूप से त्याग करने की आवश्यकता नहीं है,  इसके लिए गृहस्थ में रहते हुए अपने अपने स्वाभाविक कर्मों को परमात्मा को लक्ष्य बनाकर करते हुए भी हमें परमात्मा या उस परम तत्व की प्राप्ति हो सकती है जिसके लिए हमें मनुष्य जन्म मिला है।

         जब हम अपने कर्म केवल दूसरों के हित के लिए तत्परता तथा उत्साह पूर्वक करते हैं अर्थात केवल देने के लिए कर्म करने से मन में जो प्रसन्नता होती है उसमें एक अलग ही आनंद आता है ।  कर्म करने के बाद हम चाहें या न चाहें फल तो हमें मिलेगा ही, जैसे वेतन आदि । लेकिन यदि हम केवल फल चाहने के लिए या  केवल वेतन पर ही दृष्टि रखकर कार्य करते हैं तब वह आसक्ति पूर्वककिया हुआ कार्य हमें बांधने वाला होता है और हमें प्रसन्नता या शांति का अनुभव नहीं होता।

    दूसरे श्लोक में भगवान कहते हैं कि जिस परमात्मा से सभी प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जो इस संसार का संचालन करता है उसी परमात्मा का अपने-अपने स्वभाविक कर्मों द्वारा पूजन करना चाहिए ।  हमारा शरीर ,मन, बुद्धि आदि सभी परमात्मा के द्वारा दी गई है अतः मैं तो भगवान के द्वारा एक माध्यम बनकर या निमित्त मात्र बनकर भगवान के द्वारा दी गई चीजों से एवं मुझे जो कार्य दिया गया है उसे दूसरे मनुष्यों के हित के लिए बिना मेरापन (ममता) के कर रहा हूं।  अतः कर्म बंधन से हुए का यह बहुत सरल मार्ग है, इसलिए हमें अपने अच्छे भाव से जैसा कि ऊपर कहा गया है अपने कर्तव्य पालन द्वारा परमात्मा की पूजा करने का अभ्यास करके उस परमात्मा की प्राप्ति कर लेनी चाहिए बस केवल अपना दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है, भगवान तो हमारे अंदर बैठकर हमारे प्रत्येक भाव पर नजर रखकर हमारे प्रत्येक कार्य को देखते रहते हैं और उसी के अनुसार हमें फल (प्रारब्ध रूप ) में मिलता रहता है।

धन्यवाद 
बी. के .शर्मा

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